किसान का विकास ?

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किसान का विकास ?

किसान जो भी,जो भी करता है,
हां वही,
वही है 'सस्टेनेबल डेवलपमेंट'।
और तुम्हारी प्रदूषक खून की प्यासी
सरकारी नीतियां ही हैं,
'असली पाल्यूटैंट'।

डेमोक्रेसी है किसान के लिए दीमाकृषि
आपने कभी दवंरी देखी है?
दवंरी, इसका अर्थ यह नहीं कि ,
सार सार रख के थोथा छोड़ देना,
क्योंकि कृषक के लिए
असार तो कुछ भी नहीं।
लेकिन राज, अर्थनीति और राजनीति के लिए कृषि और कृषक कब थोथा बन गए ,
हमें बताया भी नहीं गया।
छिःअनियंत्रित अराजक लोभतंत्र
प्रकृतिस्थ प्रकृति- पुत्र कृषक का जो पक्ष है वही प्रकृति का पक्ष है।
वही कृष्ण का पक्ष है।
मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम।
खेत जोता गेंहूँ के लिए,
खाद-पानी दिया गेहूं के लिए,
पर उसके साथ उग आता है बथुआ और घास भी।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
खेत में दो पक्ष बन गए,
गेहूं के और बथुआ के,
गेहूं जितना कुढ़ता है,
बथुआ उतना हरियराता है।
उभय पक्ष की हानि..हां हां यही कहानी।
किसान आता है, सोहनी करने,
बथुआ,गुम ,गजपूरना खोट ले जाता है,
एक दिन आता है और गेहूं काट ले जाता है गेहूं की रोटी और बथुआ का साग खाता है।
गेहूं बनाम गुलाब सरकारी सिलैबस में है,
लेकिन सरकार ही गुलाबी चच्चा की है।
इस कहानी में गेहूँ और बथुआ किस तरह किसान की रक्त, अस्थि मज्जा, जिगर ,कलेजे और आत्मा में शामिल होते हैं
यह बात ना सी बी आई जानती है ,ना वित्त मंत्री ,ना वर्ल्ड बैंक ,ना ही सेवन रेसकोर्स रोड ,ना पांच कालिदास मार्ग।
अपरम् ना जानामि रे श्री कृष्ण।
यह रहस्य जानता है रमई काका
एक लाख पांच हजार का फसली कर्जा , माफी के काबिल नहीं।
सीमा से पांच हजार ज्यादा बैठ रहा है।
.
रमई काका जिम नहीं जाते,
फिर भी पीठ पेट एक है
लाल किले से भयानक आवाजें आ रही हैं
विकास विकास विकास विकास।
डा.मधुसूदन उपाध्याय
२७/१०/२०१६
लखनऊ

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