दुष्ट ! असहिष्णु!

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दुष्ट ! असहिष्णु!

एक राजा आखेट पर थे कुछ नरभक्षियों को निपटा रहे थे, अचानक एक "चार्वाक" टाइप के कथित साधु ने उन्हें लपेटे मे ले लिया, "तुम जीवो पर दया नही करते, तुम हिंसक हो, आखेट मे तुम रस लेते हो, तुम भार हो धरती पर दुष्ट ! असहिष्णु!"
विनीत राजा ने सर झुकाये बहुत सफाई दी लेकिन कथित साधु ने एक नही सुनी, डपट दिया राजा को जमकर फिर सजा सुना दी कि ये लो ये बकरे-बकरी का जोड़ा लेकर जाओ, इनकी सेवा करो और खबरदार जो कभी ये मिमियाए, आवाज जो मुझ तक पहुंची तो तुम्हे श्राप से नाप दूंगा, जब ये पूर्ण संतुष्ट हो जाएंगे 'कि तुम अहिंसक संवेदनशील मानव बन गए हो' तब ये सामने पड़ी घास भी नही खाएँगे और ना ही मिमियाएगें तभी मेरे पास इन्हें वापस लेकर आना, अब जाओ।
दुखी राजा बकरे-बकरी का जोड़ा ले आये राजमहल, सेवकों को निर्देश दे दिया की ढेर लगा दो घाँस फूस का, कुंड भर दो पानी के "सारे संसाधनों पर इन्हें प्राथमिकता" दे दो बस ये मिमियाएं नही कभी इस बात का ख्याल रहे।
साहब! जैसे ही वे बकरा-बकरी मुँह खोले की सेवक उनका मुँह रचके से भर दे, 24 घंटे दोनो बस चरते ही रहते या "करते" ही रहते। धीरे-धीरे बकरी-बकरों की संख्या अपार हो गई और घाँस-फुस अब गायों के हिस्से की भी उन्हें भेंट की जाने लगी। बीच-बीच मे 'चार्वाक' आ धमकते महल, बकरों की कुशल क्षेम देखने, कमी बेशी निकाल जाते और पाबंद कर देते की ये बहुत "भयभीत" से लग रहे हैं मुझे, इनके "पाशविक अधिकारों" का पूर्ण रक्षण हो राजन!
राजा ने मुनादी करवा दी कि कोई इन्हें हाथ भी नही लगाएगा।
अब तो बकरे-बकरी किसी को भी भेंटी मार जाते किसी का भी खेत चर जाते, किसी की भी थाली से रोटी उठा लेते, किसी बच्चे के हाथ से लिलवे झपट लेते और धक्का मार के गिरा देते।
जनता में हाहाकार हो गई, राजा भी परेशान हो गया। सारे मंत्री सांसदो ने भी हाथ खड़े कर दिये। अचानक एक दिन सुबह-सुबह बर्मन देश से एक केशहीन भिक्षुक राजा के द्वार आया, राजा ने सत्कार किया तो भिक्षुक ने कुछ दिव्य ज्ञान कह सुनाया। राजा उन्हें महल में लिवा लाया। परेशान राजा ने अपनी समस्या उनके समक्ष रखी। भिक्षुक मुस्कुराए और बकरालय की ओर चल पड़े, राजा के साथ सभी सांसद और मंत्री भी।
भिक्षुक ने एक वयस्क बकरे को एक गट्ठर घाँस दी खाने को, बकरा कुछ मिनट मे चट कर गया और लगा फिर से मिमियाने, अब भिक्षुक ने घास आगे की तो बकरे ने फिर मुँह खोला कि भिक्षुक ने एक कॉमडी (पतली लकड़ी, सन्टी) बकरे के पिछवाड़े पर चिपकाई, बकरा मिमियाते मिमियाते रुक गया, भिक्षुक ने फिर से यही प्रक्रिया दोहराई और बकरे ने मुँह खोला की भिक्षुक ने फिर से सन्टी चिपका दी। भिक्षुक ने बीस-पच्चीस सँटिया चिपकाई।
कुछ समय बाद बकरा घांस देखकर बिना मिमियाए, बिना खाये चुपचाप मुँह फेरकर खड़ा हो गया।
भिक्षुक ने कहा राजन इन सभी के साथ यही करो कुछ दिनों तक और फिर इन्हें "वामर्षि चार्वाक" के पास ले जाओ और उन्ही के आश्रम मे छोड़ आओ।
राजा प्रसन्न हो गया भिक्षु को बर्मन राज्य के लिए हाथी घोड़े सहित विदा किया और अधिकारियों को समझा दिया कि क्या करना है।
बकरों का झुंड अब "वामर्षि चार्वाक" के आश्रम में ही उनकी झंड कर रहा है।
हे नरेंद्र ! आप तो हिमालय से आये है, कई संतो भिक्षुकों से ज्ञान प्राप्त है, मेरी कोई औकात नही की आप को ज्ञान दूँ किन्तु प्रभु इतने लोड मे काम करते-करते कई किस्से राजा भी अक्सर भूल जाते है, स्मरण हुआ तो आपको भी कह सुनाया बाकी घास खाते-खाते बकरियां अब खेत और किसान भी चट कर रही है, सन्टी चमकाओ अन्यथा फिर गाये भी बकरी खाने पर बाध्य हो जाएगी फिर नो साउंड नो मैं$$$$$है ,मै ,मै ............

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