कोई चिदम्बरम को आईना लेकर दो
मैंने 7.8% का आंकड़ा हवा में से नहीं पैदा किया है - यह प्रदर्शन है चिद्दू का, बतौर वित्त मंत्री, 2008 में! तब किसी ने इस तरह से ओछी टिपण्णी दे कर छाती पीटना शुरू नहीं किया था। क्यों कि देश का वित्तीय नियंत्रण इस तरह के नाटकीय तमाशे का विषय नहीं, बल्कि एक अत्यंत गंभीर मामला है। उस में उतार चढ़ाव वैश्विक वित्तीय परिदृष्य, देसी वित्तीय गतिविधि, और सरकारी नीतियों का मिला-जुला परिणाम होता है। इसे इस तरह ओछी राजनीति का पात्र नहीं बनाना चाहिए।
कृष्ण धारासूरकर | Updated on:1 Feb 2018 9:45 PM IST
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मैंने 7.8% का आंकड़ा हवा में से नहीं पैदा किया है - यह प्रदर्शन है चिद्दू का, बतौर वित्त मंत्री, 2008 में! तब किसी ने इस तरह से ओछी टिपण्णी दे कर छाती पीटना शुरू नहीं किया था। क्यों कि देश का वित्तीय नियंत्रण इस तरह के नाटकीय तमाशे का विषय नहीं, बल्कि एक अत्यंत गंभीर मामला है। उस में उतार चढ़ाव वैश्विक वित्तीय परिदृष्य, देसी वित्तीय गतिविधि, और सरकारी नीतियों का मिला-जुला परिणाम होता है। इसे इस तरह ओछी राजनीति का पात्र नहीं बनाना चाहिए।
मैं अमूमन राजकीय गतिविधियों पर टिपण्णी करता हूँ। कारण भी है - राजनेता जितना नाट्यमय और अविश्वसनीय व्यवहार करते हैं उतना इतरत्र कहीं दिखाई नहीं देता है।
आज बजट पर टिपण्णी करते हुए "चिदंबरम ने जो कहा, उस से मैं बड़ा अचंभित हुआ।
आज वित्तमंत्री अरुण जेटली जी ने संसद में बजट प्रस्तुत किया। उस में पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी वित्तीय घाटा 3.2% रखने का सरकार का इरादा उजागर हुआ।
इस पर टिपण्णी देते हुए पूर वित्तमंत्री चिदंबरम का कहना था कि सरकार वित्तीय समेकन (fiscal consolidation) की परीक्षा में विफल हो गई है। वित्तीय घाटे को 3.2% तक सीमित करने के उस के इरादे में वह पिछले वर्ष विफल रही ही, और इस विफलता का देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा बुरा असर होगा।
New Delhi: Congress leader P Chidambaram today said Finance Minister Arun Jaitley had failed the fiscal consolidation test in Budget 2018-19 and this would have serious consequences.
The former finance minister said the fiscal deficit limit of 3.2 percent in 2017-18 had been breached and was estimated at 3.5 percent.
"The finance minister fails the fiscal consolidation test and this failure will have serious consequences," Chidambaram told PTI soon after the finance minister completed his budget speech. PTI
चिद्दू दिखता है किसी विद्वान की तरह - य्ये मोटी सोडा बोतल के तले जैसी ऐनक चेहरे पर चढ़ी हुई, किसी पड़ाकू बच्चे जैसी गोलमोल शक्ल, और फर्राटेदार अंग्रेजी में, भाल पर त्योरियां चढ़ाकर गंभीर सी टिपण्णी देने लगता है तो लगता है वाकई, ऐसा ही होगा।
पर ऐसा होता नहीं है। इस बात को जो समझे, वो कांग्रेस के खोखलेपन को समझ लेगा।
पिछले वर्ष वित्तीय घाटा 3.5% रहा। यानि पिछले वर्ष लक्ष्य केवल 0.2% दूर रहा। हम उसे पाने में लगभग सफल रहे। इस उपलब्धि को चिद्दू "विफलता" बता रहा है। और कह रहा है कि इस विफलता का बड़ा बुरा असर होगा।
अब कल्पना कीजिए कि वित्तीय घाटा 7.8% है, यानि 3.2% से लगभग ढाई गुना है। यानि 0,2% दूर होने की तुलना में उससे 23 गुना अधिक बुरा है। तब आप इस तरह का प्रदर्शन देने वाले को क्या कहोगे? यदि जेटली-मोदी इस तरह के प्रदर्शन के लिए जिम्मेवार होते तो? चिद्दू तो उन्हें इण्डिया गेट पर सरे-आम फांसी दे देता!
मैंने 7.8% का आंकड़ा हवा में से नहीं पैदा किया है - यह प्रदर्शन है चिद्दू का, बतौर वित्त मंत्री, 2008 में! तब किसी ने इस तरह से ओछी टिपण्णी दे कर छाती पीटना शुरू नहीं किया था। क्यों कि देश का वित्तीय नियंत्रण इस तरह के नाटकीय तमाशे का विषय नहीं, बल्कि एक अत्यंत गंभीर मामला है। उस में उतार चढ़ाव वैश्विक वित्तीय परिदृष्य, देसी वित्तीय गतिविधि, और सरकारी नीतियों का मिला-जुला परिणाम होता है। इसे इस तरह ओछी राजनीति का पात्र नहीं बनाना चाहिए।
वित्तमंत्री के तौर पर चिद्दू का कार्यकाल कुछ नरम-गरम ही रहा। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के मुख्य मानकों में से दो-तीन उसके कार्यकाल में ऐसे ऊपर नीचे होते रहे जैसे रोलर कोस्टर राइड पर लोग होते हैं - वित्तीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद, मुद्रास्फीति इन सारों की स्थिति उन के कार्यकाल में कुछ अच्छी नहीं थी।
मुद्रास्फीति पर मैं पीछे अलग से लिख चुका हूँ। आज वित्तीय घाटे के बारे में एक ग्राफ/चित्र दे रहा हूँ - उस में आप देख सकते हो कि पिछले दस वर्षों में चिद्दू के हिस्से के सात में से छह वर्ष वित्तीय घाटा आसमान छू रहा था। 2014 में जैसे ही मोदीजी आए, उन्होंने कर संकलन, भ्रष्टाचार पर रोक, बेफालतू योजनाओं को रद्द करने जैसे कई कदम उठाए जिस से वित्तीय घाटे पर लगाम लगी। एकदम गैरज़िम्मेदार वर्तन वाले चिद्दू का जेटली-मोदी पर इस तरह अनावश्यक टिपण्णी करना कहाँ का न्याय है?
इसी कारणवश मुझे उन लोगों की समझ पर बहुत तरस आता है, जो किसी एक भावनिक प्रश्न को ले कर मोदी को अगले चुनाव में हराने की कसमें खाने लगते है। सम्पूर्ण प्रदर्शन के परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस सरकार भाजपा के आसपास भी नहीं फटकती। भाजपा भले ही राजनीति करने में विफल साबित हो रही हो, देश के लिए वह किसी भी अन्य दल/गठबंधन से कहीं बेहतर है। और आज आवश्यकता है कि सभी राष्ट्रवादी और देश का भला चाहनेवाले सभी लोग (जो शायद 'राष्ट्रवादी' कहलाने में हिचकते है) मोदी के पक्ष में खुल कर सामने आए, वर्ना देश के भविष्य में अन्धकार ही लिखा है!
अतः सावधान मित्रों! शुभ रात्रि! जय श्रीराम!