पाताल लोक: हिन्दू धर्म के प्रति अतृप्त कुंठा की कहानी

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9 एपिसोड वाली इस वेब सिरीज़ में हर अपराधी, हर गलत व्यक्ति को भटका हुआ मासूम नौजवान दिखाया गया है जो कि हिंदुओं द्वारा उत्पीड़न के कारण गलत राह पर चल दिया है।

अमेज़ोन प्राइम पर हाल ही में रिलीज़ हुई पाताल लोक नामक वेब सीरीज़ को अभी बाज़ार में आए मात्र चंद दिन ही हुए थे और देखते ही देखते अनुष्का शर्मा द्वारा निर्मित ये सी रीज़ खबरों में खूब छा गई और ऐसा तो होना ही था, आखिर विवादित चीज़े जल्दी ही सुर्खियां जो बटोरती है। आपको बता दें कि सुदीप शर्मा द्वारा लिखित पाताल लोक बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा एवं उनके सगे भाई करनेश शर्मा द्वारा बनाई गई है।

प्रोड्यूसर के तौर पर डेब्यु कर के अनुष्का शर्मा सफलता के सातवें आसमान पर पहुँच गई है। अब जहां एक ओर अर्बन नक्सलों द्वारा उनकी नवनिर्मित वेब सीरीज़ को बहुत सरहाना मिल रही है वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों/संस्थाओं द्वारा उनको कई नोटिस भी आ चुके हैं।

पाताल लोक पर पूरे समाज को जब दो हिस्सों में बटा देखा तो मैं खुद को ये सीरीज़ देखने से रोक न पाई। खैर इसको देखने के बाद और इसके बारे में काफी पड़ने के बाद मुझे अभी तक कोई ऐसा पॉइंट नहीं मिला जिसके चलते मैं इसकी तारीफ कर सकूँ। आखिर किसी भी पटकथा की तारीफ करने के लिए जरूरी है कि उसकी कहानी आपको आकर्षित करे लेकिन इस पूरी वेब सीरीज़ में अभद्रता और गालियों का ऐसा प्रदर्शन है कि इसके कुछ दृश्य देख कर ही आप आक्रोशित हो जाएंगे और सोचेंगे कि इसमें तारीफ के जैसा था क्या? वेब सिरीज़ के प्रोटेगनिस्ट का एक कुत्ते के लिए लगाव? या बलात्कार करने से पहले जनेऊ का विशेष रूप से सीन में आना? या देवी तुल्य सावित्री के नाम का दुरूपयोग?

एक प्रोटेगनिस्ट जो पूरी वेब सिरीज़ में 45 से ज़्यादा हत्याएँ कर चुका है उसकी हम सरहा ना करें... क्यों? क्योंकि वो एक जानवर के प्रति लगाव दिखाता है। वाह! रे इंसानियत... यहाँ सवाल उसके कुत्ते के प्रति लगाव पर नहीं बल्कि 45 हत्याएँ करने के बाद भी उसको मासूम हीरो बना कर दिखाने पर है।

बात केवल यहीं तक नहीं है, बल्कि ये पूरी वेब सिरीज़ अभद्रता से परिपूर्ण है। जैसे कि सीरीज़ में एक कुतियाँ का नाम सावित्री रखना।

पहली बार में सुनने पर आपको इसमें शायद कोई बड़ी बात न दिखे, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि दुनिया में लाखों-करोड़ो नाम होने के बावजूद अनुष्का को एक कुतिया के लिए सावित्री नाम ही क्यूँ सूझा?

असल में सावित्री वैदिक धर्म में एक मान्यता प्राप्त देवी तुल्य स्त्री का नाम है, जिसका जिक्र ऋषि मार्कण्डेय द्वारा महाभारत में भी किया गया है। सावित्री को सौर देवता सावित्र की पुत्री बताया गया है जो कि अपने पतिव्रता स्वभाव के लिए आज भी वैदिक इतिहास में एक अहम पात्र के रूप में जानी जाती है। सनातनी नारियों में उसे "सती" की उपाधि प्राप्त है, खासकर कि देश के पूर्वी हिस्से में। बिहार, झारखंड और उड़ीसा में तो आज भी शादीशुदा हिन्दू महिलाएं अमावस्या के दिन सावित्री व्रत करती है।

और यदि बात अभिव्यक्ति की आज़ादी कि ही है तो में आज़ादी के ठेकेदारों को याद दिला दूँ कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार निरंकुश नहीं है। भारतीय संविधान के अनुसार आपकी अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार केवल तब तक मान्य है जब तक कि वे किसी और धर्म या व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाता।

पाताल लोक के ही एक अन्य दृश्य में गैंगस्टर्स के जनता दरबार की तुलना भगवान श्री राम और उनके भाई भरत के दरबार से की गई है।

शुरू में एक मनोरंजक थ्रिलर प्रतीत होने वाली वेब सीरीज़ की कहानी आगे बढ़ती है तो पता चलता है कि 9 एपिसोड वाली इस वेब सीरीज़ में हर अपराधी, हर गलत व्यक्ति को भटका हुआ मासूम नौजवान दिखाया गया है जो कि हिंदुओं द्वारा उत्पीड़न के कारण गलत राह पर चल दिया है।

इस सब को देखते हुए लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ियो को ये बताया जाएगा कि बेटा 1947 में बंटवारा मुसलमानों ने थोड़े ही कराया था, बल्कि वो बेचारे तो काफी अच्छे थे, ये तो क्रूर हिन्दू थे जिनकी प्रताड़नाओं के चलते मुसलमानों ने अलग देश की मांग की।

हिन्दू धर्म और उसकी मान्यताओं का इतना कम अपमान अनुष्का शर्मा और उनके भाई के लिए काफ़ी नहीं था कि आगे चल कर उन्होंने अपने वेब सिरीज़ में पुजारियों को भगवान की मूर्ति के आगे मांस खाते हुए दिखाया है और एक अन्य दृश्य में एक कलाकार बलात्कार करने से पहले विशेष रूप से जनेऊ कान के ऊपर चढ़ाता हुआ दिखाया जाता है।

क्या यहाँ जनेऊ दिखाए बिना बलात्कार का सीन पूरा नहीं होता? खैर शायद सीन तो पूरा हो जाता लेकिन हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने कि वेब सिरीज़ निर्माताओं की मंशा कैसे पूरी होती।

लगता है कि अनुष्का शर्मा और उनके भाई ने किसी किसी मज़हब विशेष से हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए ठेका लिया हो।

साथ ही हर अपराधी का संबंध चित्रकूट नामक स्थान से दिखाया गया है। हो सकता है पहली बार जब अब इस वेब सीरीज़ को देखे तो सभी अपराधियों का चित्रकूट से होना आपको काफी मामूली बात लगे, पर क्या अनुष्का शर्मा और पाताल लोक से जुड़े अन्य लोगों के पास जवाब है कि इतनी बड़ी दुनिया में उन्हें हर विलेन का संबंध दिखने के लिए मात्र चित्रकूट ही क्यों मिला? अगर बाहरी दुनिया में तलाशा जाए तो शायद इस पाताल लोक के पीछे काम कर रही देश-विरोधी ताकतों की मानसिकता का कुछ आभास मिला जाता है क्योंकि जैसी बाहरी दुनिया में "आजमगढ़" एक मजहब विशेष के आतंकियों/अपराधियों की वास्तविक पृष्ठभूमि के रूप में सामने आता रहा है ठीक उसी प्रकार उस मजहब विशेष के लोगों की अतृप्त कुंठा को शांत करने के लिए ही इस पाताल लोक की आभासी दुनिया में "चित्रकूट" का नाम उछालने की कोशिश की गई।

क्योंकि चित्रकूट को वैदिक संस्कृति में एक पवित्र तीर्थ स्थान का दर्ज़ा प्राप्त है जहां रोजाना लाखों श्रद्धालु शीश झुकाने जाते हैं। ऐसे में वेब सीरीज़ में दिखाए गए हर अपराधी का चित्रकूट से संबंध होना मात्र एक संयोग तो बिलकुल नहीं लगता।

इसी कहानी में आगे चलते है तो एक दृश्य में सेक्युलरों के सबसे बड़े दर्द यानि मोब लिंचिंग के मुद्दे को भी उठाया गया है। इस दृश्य में दिखाया गया है कि भगवाधारी लोग मुसलमानों को केवल गौमांस ले जाने के शक के आधार पर मारते हैं और उनकी मोब लिंचिंग करते हैं। आपको याद दिला दें कि ये किस्सा 2017 कि एक सच्ची घटना पर आधारित है जिसमें जुनैद खान नाम के व्यक्ति की मोब लिंचिंग के लिए केस दर्ज़ कराया गया था।

2017 के इस असल किस्से में जुनैद खान के केस की पड़ताल के बाद जस्टिस ए॰ बी॰ चौधरी ने जांच के आधार पर अपने फैसले में साफ किया था कि यह मोब लिंचिंग नहीं बल्कि ट्रेन में सीट को ले कर हुआ झगड़े का मामला था जिसे जानबूझकर कुछ शरारती तत्वों ने मोब लिंचिंग का नाम देकर माहौल खराब करने की कोशिश की थी। लेकिन वेब सीरीज़ में इस किस्से का सिर्फ उतना हिस्सा दिखाया गया जितने में मोब लिंचिंग की बात को सच माना गया।

पाताल लोक में देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। इसमें दिखाया गया है सीबीआई ठीक से जांच-पड़ताल करके गुनाहगारों का असली गुनाह साबित नहीं कर पाती तो वो आरोपियों को आईएसआई का बता कर केस की अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला छुड़ा लेती है। अत: इस सीन में साफ तौर पर ये दर्शाने का प्रयास किया गया है कि सीबीआई जिन लोगों का संबंध आईएसआई से बताती है वे सभी बेचारे/मासूम नागरिक हैं जिनका आईएसआई या किसी भी आपराधिक क्रिया-कलाप से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है, वे तो मात्र भटके हुए युवा है और सीबीआई निकम्मी है जो ठीक प्रकार से पड़ताल नहीं करती और केस से अपना पल्ला छुड़ाने के लिए एसे भटके हुए मासूम युवाओं को आईएसआई का बता देती है।

इसी प्रकार ये पूरी वेब सीरीज़ अभद्रता से भरी हुई है अब इस से पहले की स्वरा भास्कर और अनुराग कश्यप जैसे अभिव्यक्ति की आज़ादी के ठेकेदार प्लेक कार्ड ले कर इंस्टाग्राम पर फोटो अपलोड करे, बता दूँ की अभिव्यक्ति की आज़ादी और अभद्रता के बीच एक बहुत थिनलाइन है जिसको समझना बेहद जरूरी है। खासकर कि अनुष्का शर्मा जैसे समाज के उन लोगों के लिए जिन्हें करोड़ो लोग अपना हीरो या आदर्श मानते हों।

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