शरिया कोर्ट / दारुल क़ज़ा : भारतीय संविधान को खुली चुनौती ?
आज के संदर्भ में देखा जाए तो भारत में हिन्दू/सनातन धर्म के अलावा अनेक संप्रदाय/पंथ हैं जिन्हें आजादी के बाद से ही अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है और उन्हीं में से एक है इस्लाम। भारत की सांसकृतिक विशेषता और बहुसंख्यक हिंदुओं की सहहृदयता के कारण अनेकों धर्म-संप्रदाय सदियों से साथ मिलकर रहते आ रहे है। भारत में जिस भी धर्म या संप्रदाय ने स्थान मांगा, सनातन धर्म ने उसे हमेशा खुले दिल से शरण दी। और आज 21वीं सदी में सभी धर्म-संप्रदाय भारतीय संविधान के राज में सुकून से रह रहें है। परंतु मुस्लिम धर्म के द्वारा बार-बार शरिया एवं मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड की मांग भारत को वापस से गुलामी के उस दौर की याद दिलाती है जहां भारत आज़ादी की कगार पर खड़ा था परंतु मुस्लिम लीग की गलत मांगों ने देश के टुकड़े कर दिये।


X
आज के संदर्भ में देखा जाए तो भारत में हिन्दू/सनातन धर्म के अलावा अनेक संप्रदाय/पंथ हैं जिन्हें आजादी के बाद से ही अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है और उन्हीं में से एक है इस्लाम। भारत की सांसकृतिक विशेषता और बहुसंख्यक हिंदुओं की सहहृदयता के कारण अनेकों धर्म-संप्रदाय सदियों से साथ मिलकर रहते आ रहे है। भारत में जिस भी धर्म या संप्रदाय ने स्थान मांगा, सनातन धर्म ने उसे हमेशा खुले दिल से शरण दी। और आज 21वीं सदी में सभी धर्म-संप्रदाय भारतीय संविधान के राज में सुकून से रह रहें है। परंतु मुस्लिम धर्म के द्वारा बार-बार शरिया एवं मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड की मांग भारत को वापस से गुलामी के उस दौर की याद दिलाती है जहां भारत आज़ादी की कगार पर खड़ा था परंतु मुस्लिम लीग की गलत मांगों ने देश के टुकड़े कर दिये।
0
Tags: #भारत#सर्वोच्च न्यायालय#सुप्रीम कोर्ट#शरीय#मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड#इस्लाम#दारुल कज़ा#एआईएमपीएलबी#शरिया कोर्ट#India