न्यायाधीशों में बढ़ रहा वीआईपी होने का अहंकार ?

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पिक्चर बनाने में फ़ोटोग्राफ़ी की तकनीक बहुत महत्वपूर्ण होती है। लेखक, कवि की बुद्धि-क्षमता, डायरेक्टर का कौशल, साइट का आनंद, एक्टिंग का आनंद कैमरे की आँख से ही तो लिया जाता है। इसमें क्लोज़ अप, लॉन्ग रेंज शॉट, शैडो तथा लाइट का संयोजन इत्यादि अनेक तकनीकों का प्रयोग होता है। ज्ञातव्य है कि क्लोज़ अप का प्रयोग कहानी के किसी भाग पर फ़ोकस बढ़ा कर प्रधानता स्थापित करने और लॉन्ग रेंज शॉट का प्रयोग कथ्य को फ़ेड आउट करते हुए शॉट से बाहर जाने के लिये किया जाता है।

आप कहेंगे कि आज हो क्या गया है कि एक राष्ट्रवादी फ़ोटोग्राफ़ी पर क्यों बात कर रहा है ? बात यह है कि राजस्थान पत्रिका में समाचार छपा है कि मद्रास हाईकोर्ट ने नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया {NHAI} को आदेश दिया है कि वह अपने सभी टोल प्लाज़ा पर वीआईपी और मौजूदा न्यायाधीशों के लिये एक विशेष लेन बनाये। ऐसा नहीं किया गया तो उसे कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिये।

राजस्थान पत्रिका के समाचार के अनुसार मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस हलुवाड़ी जी रमेश और जस्टिस एम वी मुरलीधरन की खंडपीठ ने कहा, यह वीआईपी और न्यायाधीशों के लिये बहुत शर्म की बात है कि वे टोल प्लाज़ा पर इंतज़ार करें और अपने परिचय पत्र दिखायें। कोर्ट ने कहा, अलग लेन न होने से हर टोल प्लाज़ा पर मौजूदा न्यायाधीश और वीआईपी को आवश्यक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि टोल प्लाजा पर न्यायाधीश को 10 से 15 मिनिट तक इंतज़ार करना पड़ता है। इस बात को न केंद्र सरकार और न NHAI गंभीरता से ले रही है।

आप सब सौभाग्यशाली हैं कि आपने वह दिन नहीं देखे जब प्रजा किसी राजा, नवाब, बादशाह से मिलने जाती थी तो लोग सरकार के जयकारे लगाते हुए लगभग रेंग कर दरबार हॉल में घुसते थे। हॉल में एक ही कुर्सी होती थी जिस पर सरकार विराजी होती थी। पृथ्वीनाथ, अन्नदाता, हुक्म, हुज़ूर, माईबाप, आला हज़रत, सरकार का नमकख़्वार कहते हुए, गिड़गिड़ाते हुए, धरती की ओर नीचे देखते हुए लोग खड़े रहते थे। दृष्टि उठायी नहीं जा सकती थी। बाहर आते समय उल्टे चल कर लौटा जाता था। पीठ नहीं दिखाई जा सकती थी। इसका दंड मुर्ग़ा बना कर कमर पर भरी पत्थर लाद दिया जाना, कोड़ों-बेंत से पिटाई से ले कर कुछ भी हो सकता था। ज़ाहिर है सरकार वीआईपी होते थे।

इसका केवल एक अपवाद अकिंचन की जानकारी में है। भैंण मायावती जी अपने विधायकों के मध्य में इसी प्रकार बैठती थीं। कमरे में एक ही कुर्सी होती थी और प्रजा चरणों में विराजती थी। बड़े-बड़े अधिकारी सरकार का नमकख़्वार कहते हुए, गिड़गिड़ाते हुए, धरती की ओर नीचे देखते हुए लोग खड़े रहते थे। दृष्टि उठायी नहीं जा सकती थी।

मेरी जानकारी के अनुसार जो इस समाचार पढ़ने के बाद लग रहा है कि ग़लत है ये कहना कि अब भारत में जनतंत्र है और यहाँ वीआईपी कल्चर ख़त्म हो गया है। यहाँ से पिक्चर की तकनीक शुरू होती है। क्लोज़ अप में पृथ्वीनाथ, अन्नदाता, हुक्म, आला हुज़ूर, माईबाप, सरकार विराजे हैं और सरकार के नमकख़्वार गिड़गिड़ाते हुए, धरती की ओर दृष्टि झुकाये, उल्टे चल कर लौटने के लिये दीनहीन-विगलित, पीठ दिख जाने पर दंड के भय से थरथर काँपते केंचुए खड़े बल्कि रेंग रहे हैं। क्लोज़ अप में दिल्ली, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद में कूड़े के पहाड़ों पर, शहरों के कूड़े पर चिंतित, यमुना के तट पर कार्यक्रम की चपेट में केंचुओं, साँपों, मेढ़कों, चिड़ियों के आ जाने, उनके घरोंदे नष्ट हो जाने पर खिन्न, अनमनस्क, कुपित आदेश देते हुए, वीआईपी विराजे हैं।

लॉन्ग रेंज के शॉट में प्रत्येक ज़िले, प्रदेश, केंद्र में विराजे वीआईपी, पृथ्वीनाथ, अन्नदाता, हुक्म, आला हुज़ूर, माईबाप, सरकार के हुज़ूर में बीसों वर्षों से जमा होते, माउंट एवरेस्ट से भी ऊँचे, दृष्टि, श्रवण, अनुमान की सीमा से भी बड़े, चौतरफ़ा मुक़दमों की फाइलों के भयानक पहाड़ हैं मगर इनसे क्या होता है चूँकि लॉन्ग रेंज शॉट का प्रयोग कथ्य को फ़ेड आउट करते हुए शॉट से बाहर जाने के लिये किया जाता है।

बोलो सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की जय। धर्म की जय हो। अधर्म का नाश हो। प्राणियों में सद्भावना हो। विश्व का कल्याण हो

और ये और ये सब चेन्नई में हो भी गया

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