अविश्वास प्रस्ताव और राहुल का बचकानापन: क्या यही है कांग्रेस का भविष्य?

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आज संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर जिरह और मतदान के परिप्रेक्ष्य में जो सबसे बड़ा प्रहसन हुआ, वह यह नहीं था कि कांग्रेस के युवा अध्यक्ष ने भाषा, विमर्श, तर्क और संयम के स्तर पर हास्यास्पद ही नहीं, लज्जास्पद तक़रीर पेश की!

आज के दिन का सबसे बड़ा मज़ाक़ तो यह था कि देश के पढ़े-लिखे, उदारवादी, मेधावी बुद्धिजीवी श्री राहुल गांधी के भाषण को उचित और मनमोहक सिद्ध करने में एक स्वर से जुट गए। ट्विटर से लेकर फ़ेसबुक तक आज इन बुद्घिमानों ने अपनी विवेकशीलता के साथ आपराधिक छल समारोहपूर्वक किया, और देश ने जुगुप्सा के साथ वह शवसाधना देखी। उनके द्वारा किए जा रहे प्रयास निश्चित ही उस शर्मिंदगी का प्रतिफल थे, जो उनके कर्णधार ने आज उन्हें अनुभव कराई है।

भारत के जनमत के प्रति अविश्वास का प्रत्यक्ष विज्ञापन तो वो ख़ैर थे ही।

एक स्पष्टतया अल्पबुद्धि, भ्रमित और विवेकहीन युवक, जो स्पष्टतया राष्ट्रीय नेतृत्व के सर्वथा अयोग्य है, पर भारतवर्ष का समूचा उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष चिंतन किस असहायता, अपमान की किस चेतना के वशीभूत होकर आश्रित हो गया होगा, कल्पना ही की जा सकती है।

अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया तर्कपूर्ण, संयमित, ऊर्जस्वित भाषण और चाहे कुछ सिद्ध करता हो या ना करता हो, इतना अवश्य स्थापित करता है कि वे भारत का नेतृत्व करने के समस्त उपलब्ध विकल्पों में श्रेष्ठ हैं।

अविश्वास का ऐसा आत्मघात इससे पहले किसी और राजनीतिक गठबंधन ने नहीं किया होगा. विनाशकाले प्रतिकूल बुद्धि!

राजनीतिक नैरेटिव के कुशल खिलाड़ी नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के द्वारा दिए गए इस अवसर का दत्तचित्त होकर दोहन किया और इस उद्यम का नवनीत राष्ट्र के सम्मुख है।

वर्ष 2019 के चुनाव का नैरेटिव सेट कर दिया गया है।

तर्क वितर्क की आवश्यकता अपरिहार्यता से परे, देश ने दोनों पक्षों का नैतिक बल तो आज आमने सामने देख लिया, और भूल करने की कोई गुंजाइश अब शेष नहीं होनी चाहिए।

वर्ष 2019 में भारतीय चेतना और गौरव की विजय हो, अब यही ध्येय!

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