विषैला वामपंथ - आर्थिक विकास का भ्रम और समाज के लिए ख़तरा
ऐसा हुआ तो नहीं, बल्कि यह वोट बिकाऊ बना तथा चुनावी ब्लॅकमेल का साधन बन गया। वेल्फेयर के पैसे नेता अपनी जेब से देता तो नहीं और न ही अपनी पार्टी के सभासदों से कोई फंड खड़ा कर के देता है। और इनके लाभार्थी तो देने के पोजीशन में आए तो भी लेना नहीं छोड़ते। देश के गले में परमानेंट बोझ बांधकर ऐसे नेता चले जाते हैं।


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ऐसा हुआ तो नहीं, बल्कि यह वोट बिकाऊ बना तथा चुनावी ब्लॅकमेल का साधन बन गया। वेल्फेयर के पैसे नेता अपनी जेब से देता तो नहीं और न ही अपनी पार्टी के सभासदों से कोई फंड खड़ा कर के देता है। और इनके लाभार्थी तो देने के पोजीशन में आए तो भी लेना नहीं छोड़ते। देश के गले में परमानेंट बोझ बांधकर ऐसे नेता चले जाते हैं।
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