"देश को धमकी" - आखिर ज़फरुल इस्लाम पर कार्यवाही से क्यों डर रहीं सरकारें ?

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दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम का 28 अप्रैल को सोशल मीडिया पर किया गया पोस्ट बिना किसी भी प्रकार के संदेह के सांप्रदायिक और विभाजनकारी था। उनके द्वारा किया गया ये विचारोत्तेजक पोस्ट किसी भी नज़रिये से एक कट्टरपंथी तत्व द्वारा किया गया पोस्ट दिखाई देता है, जिसके विरुद्ध सरकार द्वारा कानून के अनुसार उचित कार्यवाही की जानी चाहिए।

इस पोस्ट को करने के पीछे उनका मकसद क्या था क्योंकि ये ऐसे समय में की गई है जब परिस्थितियोंवश इस समय देश में हिंदू - मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव अधिक है, पहले तो CAA-NRC विरोध के कारण और अब CoronaVirus के मामले में तबलीगी जमात के कारण बड़े पैमाने पर हिंदू - मुस्लिमों में चल रहे तनाव के माहौल में खान का संदेश आग में घी डालने जैसा है।

जफरुल इस्लाम ने जो लिखा है वो बहुत ही उत्तेजना पैदा करने शब्द है। उनके ही शब्दों का हिन्दी रूपान्तरण - धन्यवाद कुवैत, भारत के मुस्लिमों के साथ खड़े होने के लिए! हिंदुओं ने सोचा था कि अपने बड़े आर्थिक संबंधों के कारण मुस्लिम और अरब दुनिया भारत के मुसलमानों के साथ हो रहे उत्पीड़न की परवाह नहीं करेगी ।

कट्टरपंथी भूल गए हैं कि भारतीय मुसलमान "मुस्लिम और अरब दुनिया" की आँखों में सदियों से इस्लामी कारणों से अपनी सेवाओं के लिए इस्लामी मुद्दों की सेवा और इस्लामी और अरब विज्ञान में उनकी अग्रणी भूमिका और विश्व विरासत में उनके विशाल सांस्कृतिक योगदान के कारण बहुत सद्भावना का आनंद लेते हैं है । कुछ विशेष नाम शाह वलीउल्लाह देहलवी, इकबाल, अबुल हसन नदवी, वाहिदुद्दीन खान, जाकिर नाइक और कई अन्य जैसे नाम अरब और मुस्लिम दुनिया में घरेलू नाम हैं।

अपनी इस पोस्ट में खान ने कुछ भारतीय मुसलमानों का नाम लिखा है जिन्होंने इस्लामी संस्कृति और सभ्यता में योगदान दिया है, लेकिन वो कोई बड़ी बात नहीं अगर इन नामों में कोई चौकने वाला नाम है तो वह जाकिर नाइक का नाम, खान द्वारा भारत के एक भगोड़े अपराधी का नाम केना और साथ ही उस नाम को अरब और मुस्लिम दुनिया में एक "सम्मानित घराने" के रूप में रखना।

ज्ञात हो कि भगोड़े नाइक के खिलाफ भारत के अनुरोध पर इंटरपोल द्वारा रेड कॉर्नर नोटिस दिया गया है जो यहाँ से मलेशिया भाग गया था। उसे गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज किया गया है, जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद से संबंधित मामलों में वांछित है। भारत में उसकी संपत्तियों को आधिकारिक एजेंसियों द्वारा कुर्की के लिए अपने अधीन किया गया है। लेकिन जफरुल इस्लाम ने उस भगोड़े को बहुत उच्च सम्मान देते हुये एक हीरो की तरह प्रस्तुत किया हैं।

खान के इस पोस्ट/पत्र की अंतिम कुछ लाईनें तो बहुत ही भड़काऊ और वैमनस्य फैलाने वाली हैं। ध्यान रखो: अभी तक भारतीय मुसलमानों ने तुम्हारे द्वारा किए जा रहे नफरती अभियान, लिंचिंग एवं दंगों के खिलाफ अरब और मुस्लिम देशों से शिकायत नहीं की है। जी दिन उन्हें शिकायत ये करनी पड़ी, तो उस दिन आपको ज़लज़ले/तूफान का सामना करना पड़ेगा।

खान ने बड़ी चालाकी से अपने पद का फायदा उठाते हुये अपनी इस नफरत भरी पोस्ट को लिखा है क्योंकि उखान ने ये पोस्ट एक साधारण नागरिक के रूप में नहीं अपितु दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के रूप में लिखी है जिस कारण उनके विरूद्ध तुरंत ही कोई कानूनी कार्यवाही करने में बाधा हो सकती है। जफरुल इस्लाम ने अपनी इस पोस्ट में उसके नीचे ही अपने नाम के साथ अपने वर्तमान पद दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष के रूप में उल्लेख भी किया है एवं अपने इन नफरती विचारों को अपने सोशल मीडिया Accounts पर प्रसारित भी किया है।

एक भारतीय होने के साथ ही देश के एक उच्च संवैधानिक पद पर रहते हुये जफरुल इस्लाम को कम से कम अपनी नफरत भरी पोस्ट करने से पहले ये तो सोचना चाहिए था कि उसका वेतन, आधिकारिक कार और अन्य भत्ते, सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी के बराबर की सभी सुख-सुविधाएं उन्हीं करदाताओं के पैसे से भुगतान उन्हें दिये जाते हैं जिन भारतियों को वो अपने कथित मुस्लिम एवं अरब दुनिया के लोगों की धमकी दे रहें हैं।

वैसे तो यह पूरा विवाद अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हाथों में है,क्योंकि यह ज्ञात हो कि "दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष पद" दिल्ली सरकार द्वारा अर्ध-न्यायिक निकाय का नेतृत्व करने के लिए नामित किया जाता है। लेकिन मामला क्योंकि देश की संप्रभुता से भी संबन्धित है और जफरुल इस्लाम की पोस्ट में सीधे - सीधे उस को चेतावनी दी गई है जो कि देशद्रोह के अंतर्गत आता है इस कारण अब नियमानुसार केंद्र/राज्य को निर्णय लेना है कि वह खान के खिलाफ कार्यवाही करते हुये उन्हें तुरंत हटा देना चाहते हैं या फिर अपने वोट बैंक के मद्देनजर जफरुल इस्लाम को इस उच्च पद पर बनाए रखना चाहते हैं, वर्तमान में दोनों ही सरकारों के लिए इसका निर्णय करना एक मुश्किल विकल्प है।

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