आदिवासी की सूझबूझ से बची 2000 यात्रियों की जान
"स्वप्न देववर्मा" और "सोमती" ने ऐसे ही जंगल में भटकते हुए देखा कि बारिश के कारण जमीन धसकने और कीचड़ का सैलाब आने से रेल पटरियाँ अपनी जगह से हिल गई हैं। वहीं दूसरी ओर से ट्रेन आने वाली थी। इस अनपढ़ व्यक्ति ने आनन-फानन में अपनी शर्ट उतारी, इसकी बच्ची ने भी अपनी फ्राक उतारी और दोनों ने हाथों में लेकर लहराते हुए पटरियों पर ट्रेन की तरफ दौड़ लगा दी।
"स्वप्न देववर्मा" और "सोमती" ने ऐसे ही जंगल में भटकते हुए देखा कि बारिश के कारण जमीन धसकने और कीचड़ का सैलाब आने से रेल पटरियाँ अपनी जगह से हिल गई हैं। वहीं दूसरी ओर से ट्रेन आने वाली थी। इस अनपढ़ व्यक्ति ने आनन-फानन में अपनी शर्ट उतारी, इसकी बच्ची ने भी अपनी फ्राक उतारी और दोनों ने हाथों में लेकर लहराते हुए पटरियों पर ट्रेन की तरफ दौड़ लगा दी।
चंद दिनों पहले की बात है, त्रिपुरा के जंगलों में लकड़ियाँ बीनकर और जंगली फल बेचकर अपना गुज़ारा चलाने वाले स्वप्न देववर्मा और सोमती ने ऐसे ही जंगल में भटकते हुए देखा कि बारिश के कारण जमीन धसकने और कीचड़ का सैलाब आने से रेल पटरियाँ अपनी जगह से हिल गई हैं। वहीं दूसरी ओर से ट्रेन आने वाली थी। इस अनपढ़ व्यक्ति ने आनन-फानन में अपनी शर्ट उतारी, इसकी बच्ची ने भी अपनी फ्राक उतारी और दोनों ने हाथों में लेकर लहराते हुए पटरियों पर ट्रेन की तरफ दौड़ लगा दी।
संयोग से इंजन ड्राईवर ने इन्हें दूर से देख लिया और समय पर ब्रेक लगाकर इनसे जानकारी प्राप्त की, इस तरह लगभग 2000 यात्रियों के प्राण बचा लिए गए।
त्रिपुरा सरकार ने स्वप्न देववर्मा को 5000 रूपए देकर पुरस्कृत तो किया ही है, इसके अलावा त्रिपुरा सरकार के साईंस मंत्री सुदीप रॉय बर्मन ने पिता-पुत्री को अपने बंगले पर ले जाकर साथ में खाना भी खिलाया। अब त्रिपुरा सरकार ने नॉर्थ-ईस्ट रेल फ्रंटियर से आवेदन किया है कि इस बहादुरी और समझ के लिए स्वपन देववर्मा को रेलवे में कैसी भी नौकरी दे दी जाए, ताकि इससे इन बहादुरों की गरीबी भी दूर हो जाए।