किस्सा ए हिजरा : पार्ट-1
मौलाना साहब खिलाफत के खात्मे से बेहद आहत थे। उन्हें लगता था कि उम्मा अब लीडरलेस हो गई है, इसे सही रास्ता दिखाने के लिए एक नेतृत्व बहुत जरूरी है। अपने जमाने के इस्लाम के सबसे आला विद्वान मौलाना आजाद को मुसलमानों का एक बड़ा तबका इमाम-उल-हिंद घोषित कर उन्हें अपना आध्यात्मिक नेता बनाना चाहता था। मौलाना साहब भी इसके लिए उत्सुक थे पर इस बाबत मुसलमानों में आपसी सिरफुटौव्वल देख उन्होंने कदम खींच लिए।


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मौलाना साहब खिलाफत के खात्मे से बेहद आहत थे। उन्हें लगता था कि उम्मा अब लीडरलेस हो गई है, इसे सही रास्ता दिखाने के लिए एक नेतृत्व बहुत जरूरी है। अपने जमाने के इस्लाम के सबसे आला विद्वान मौलाना आजाद को मुसलमानों का एक बड़ा तबका इमाम-उल-हिंद घोषित कर उन्हें अपना आध्यात्मिक नेता बनाना चाहता था। मौलाना साहब भी इसके लिए उत्सुक थे पर इस बाबत मुसलमानों में आपसी सिरफुटौव्वल देख उन्होंने कदम खींच लिए।
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