इमरजेंसी: इंदिरा गांधी के भय का परिणाम
नयनतारा सहगल ने कहा कि इंदिरा ने भारतीय राजनीति को "हम" और "वो" के खेमों में विभाजित कर दिया था, जहाँ हम का मतलब उनके ख़ुद की राजनैतिक महत्वाकांक्षा थी जिसका विस्तार राष्ट्रीय स्तर तक कर दिया गया था और यह मान लिया गया था कि इंदिरा को गद्दी पर बिठाना भारत की आवश्यकता है। मानों इंदिरा का प्रधानमंत्रित्व राष्ट्र के लिए संजीवनी है। इंदिरा का पूरा जीवन सम्पूर्ण मानसिक सुरक्षा की वह खोज बन गई थी जो हर जगह से स्वयं की स्वीकार्यता पर ख़त्म हो सकती थी। उनके लिए यह काफ़ी नहीं था कि लगभग सभी अखबार उनके पक्ष में ही लिखते हैं, उनके लिए यह सोचनीय हो जाता कि वो इक्का-दुक्का भी उंनके पक्ष में क्यों नहीं लिखते हैं? वह इस बात से संतुष्ट नहीं रहतीं कि ज़्यादातर बुद्धिजीवी उनकी तारीफ़ ही किया करते हैं, वह इस बात से बेचैन रहतीं कि सभी बुद्धिजीवी उनकी तारीफ़ क्यों नहीं करते?


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नयनतारा सहगल ने कहा कि इंदिरा ने भारतीय राजनीति को "हम" और "वो" के खेमों में विभाजित कर दिया था, जहाँ हम का मतलब उनके ख़ुद की राजनैतिक महत्वाकांक्षा थी जिसका विस्तार राष्ट्रीय स्तर तक कर दिया गया था और यह मान लिया गया था कि इंदिरा को गद्दी पर बिठाना भारत की आवश्यकता है। मानों इंदिरा का प्रधानमंत्रित्व राष्ट्र के लिए संजीवनी है। इंदिरा का पूरा जीवन सम्पूर्ण मानसिक सुरक्षा की वह खोज बन गई थी जो हर जगह से स्वयं की स्वीकार्यता पर ख़त्म हो सकती थी। उनके लिए यह काफ़ी नहीं था कि लगभग सभी अखबार उनके पक्ष में ही लिखते हैं, उनके लिए यह सोचनीय हो जाता कि वो इक्का-दुक्का भी उंनके पक्ष में क्यों नहीं लिखते हैं? वह इस बात से संतुष्ट नहीं रहतीं कि ज़्यादातर बुद्धिजीवी उनकी तारीफ़ ही किया करते हैं, वह इस बात से बेचैन रहतीं कि सभी बुद्धिजीवी उनकी तारीफ़ क्यों नहीं करते?
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