Pallavi Mishra
I am a leaf on the wind,Watch how I soar- I'll never let go
मैं नंदी : अंतहीन प्रतीक्षा का प्रतीक
मैं नंदी प्रतीक्षा का प्रतीक हूँ अनंतकाल से ही, भक्ति - प्रतीक्षा का आदर्श रूप जो है। अंतहीन प्रतीक्षा ही तो है - यह जीवन। जो होना है, उसके हो लेने में समय है अभी जिसकी ख़ातिर जिए जा रहे हैं, बीते जा रहे हैं हम बहे जा रहे हैं, समय के साथ नदी की तरह। नदी की प्रतीक्षा समुद्र तक की समुद्र की...
Pallavi Mishra | 5 Nov 2019 12:12 PM GMTRead More
सुनो मीलॉर्ड! हर भारतीय है राम का वंशज
आदरणीय मीलॉर्ड क्या वैटिकन में जीसस के वंशजों की तलाश हुई थी कि वैटिकन को क्रिश्चियनिटी का केंद्रबिंदु बनाया जा सके? मक्का के काबा की पवित्रता को सुनिश्चित करने से पहले क्या नबी के वंशजों को ढूँढा था धर्म ने?हिन्दू धर्म पर सवाल संभवतः इसलिए किए जाते हैं क्योंकि हमारा धर्म आपको इतना स्पेस और सहूलियत...
Pallavi Mishra | 10 Aug 2019 4:56 PM GMTRead More
मैं राम हूँ: मैं निर्वासित था अयोध्या से
मैं राम हूँ - मैं निर्वासित था अयोध्या से मैं राम हूँ - मैं निर्वासित हूँ आज भी अयोध्या से। मैं राम - निर्वासित रहा सीता की उलाहनाओं से भी निःशब्द, राजमहल से निकलती सीता ने नहीं किया मुझसे कोई भी प्रश्न। सीता- निर्वासित किया जिसने अपने प्रति मेरे कर्तव्यों से। मैं राम - निर्वासित...
Pallavi Mishra | 13 April 2019 7:12 AM GMTRead More
पर्यावरण संरक्षण: बड़े काम के हमारे मिथक
एक प्रिंसटन स्कॉलर और सैनिक रॉय स्क्रेनतों ने अपने निबंध, "लर्निंग हाऊ टू डाई इन द एनथ्रोपोसिन"2013, में लिख डाला कि "यह सभ्यता मृत हो चुकी है" और इस बात पर जोर दिया कि आगे बढ़ने का एक रास्ता यह जान लेना भी है कि अब कुछ भी नहीं बचा जिससे हम ख़ुद को बचा सकते हों। इसलिए हमें बिना किसी मोह या डर के कठिन...
Pallavi Mishra | 18 Sep 2018 2:41 PM GMTRead More
हिन्दी दिवस का औचित्य?
भाषाई-दिवस मनाने की परम्परा किसी और देश में नहीं पनपी क्योंकि वहाँ भाषा पर सवाल नहीं उठते।भाषा को लेकर विवाद और आंदोलन नहीं हुआ करते।अब इस देश में आंदोलन की परम्परा रही है-भाषा, धर्म, क्षेत्र सब को लेकर, तो यहाँ दिवस भी मनाए जाते हैं। देश में कोई राष्ट्र-भाषा है नहीं, हो भी नहीं सकती, संविधान की...
Pallavi Mishra | 14 Sep 2018 5:50 PM GMTRead More
अध्यात्म से दूर भौतिकी में उलझा मानव
शोध की प्रखरतम अवस्थता वह होती जब मानवता उस अज्ञात को जान लेने के निकट होती। शोध किया गया तो भौतिक सुखों के लिए, विज्ञान भौतिकी से ऊपर उठ नहीं पाया बल्कि अब भी उलझा उसी में है, जो उलझाए जा रही है पृथिवी पर हमारी स्थिती। हर आविष्कार का एक विपरीत परिणाम दिख जाता है, जो धरती, आकाश, पाताल के बिफरते...
Pallavi Mishra | 31 Aug 2018 4:53 PM GMTRead More
बुद्धिजीवियों के नकाब में "शहरी नक्सलियों" का "रक्त चरित्र"
सामाजिक, आर्थिक उत्थान ही अगर ध्येय है तो इसके लिए प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश क्यों, माओवादियों? स्वतंत्र भारत के इतिहास में नक्सली संगठनों के सक्रिय होने और उनके द्वारा हत्याएँ किये जाने पर आम जनमानस को यह संदेश दिया जाता रहा है कि इसका कारण मूलतः ज़मीन और ज़मीन से जुड़ी समस्याएँ हैं। किसी भी...
Pallavi Mishra | 29 Aug 2018 3:10 PM GMTRead More
शर्म को शर्म रहने दो, बेशर्म न बनाओ । अगर वो बेशर्म बनी, तो तुम मर जाओगे ॥
नग्नता की सज़ा देने को अपनी सजाओं की सूची से बाहर कीजिए, अगर औरतों ने विद्रोह कर नग्नता अपना ली, तो आपकी सारी स्थापित संरचनाएं ध्वस्त हो जाएंगी। औरतों और महिलाओं ने आपके साम्राज्य को अपनी शर्म की बुनियाद से कायम किया है, अगर शर्म की बुनियाद हिल गई, तो आप न पिता रह पाएँगे, न पति, न भाई न कुछ और भी। ...
Pallavi Mishra | 23 Aug 2018 2:43 PM GMTRead More
बकरीद: कुर्बानी या गैर मुस्लिमों का भयदोहन
कल कश्मीर की एक मस्ज़िद में ऐसा क्या कहा गया हुआ होगा कि बाहर आते ही पत्थरबाजी शुरू हो गई। इधर कुछ दिनों से सुनाई नहीं दे रही थी पत्थरबाजी की घटना। कुर्बानी में बकरों की जगह कुछ और माँग लिया गया क्या, कहीं लड़कों को मार डालो का संदेश तो नहीं दे दिया गया मस्ज़िदों में। लड़कों से यह तो नहीं कह दिया गया...
Pallavi Mishra | 23 Aug 2018 7:21 AM GMTRead More
कुछ लोगों के लिए "सड़क पर कांवड़िए" मात्र एक भीड़ है ?
हमारे लिये वो भीड़ हैं, ट्रैफिक जाम करने वाली भीड़ । हमारे लिये ये लोग वो हैं ज़िनके पास कोई काम नहीं है और है फालतू का समय, जो हमारे जैसों के पास तो बिलकुल भी नहीं हैं । नंगे पाँव मीलों, पानी, जी हाँ केवल पानी ही कंधों पर उठाए, उमस भरी गर्मी में धुन का सफर तय करते ये वो लोग हैं ज़िन्हे देख हम अपनी...
Pallavi Mishra | 8 Aug 2018 3:30 PM GMTRead More
बढ़ते कब्र-स्थल और जन-स्मृतियों की राजनीति
साऊथ पार्क सेमेट्री, कोलकाता की ऐतिहासिक विरासत मानी जाती है, जो कोलकाता के औपनिवेशिक अतीत का संरक्षित स्मृति अवशेष है। कोलकाता आनेवाले विदेशी सैलानी की गाइड-बुक में साउथ पार्क सेमेट्री पूरे दम-खम के साथ मौजूद है, जिस पर यह दर्ज़ है कि यह 1767 में बना ताकि उन ब्रिटिश लोगों को जगह दी जा सके, जो देश...
Pallavi Mishra | 8 Aug 2018 2:41 PM GMTRead More
इधर कंगना ने की मोदी की तारीफ, उधर छद्म नारीवादियों का आरंभ हुआ रुदाली विलाप
सुना है नारीवादिनियों को बड़ी तीव्र घृणा आती है मोदी से - अतिशय घृणा। एक सिने-अभिनेत्री ने तारीफ़ क्या कर दी मोदी की तो उसे जात-निकाला दे दिया नारीवादिनियों ने।तुम उसकी तारीफ़ कैसे कर सकती हो, वह तो तुम्हें फेमिनिस्ट भी नहीं रहने देगा, स्वतंत्रता कितनी मिल पाएगी तुम्हें उसके काल में, पार्कों में भी...
Pallavi Mishra | 31 July 2018 2:35 PM GMTRead More