Pallavi Mishra

Pallavi Mishra

I am a leaf on the wind,Watch how I soar- I'll never let go


  • सर्जिकल स्ट्राइक: सेना का शौर्य बनाम राजनीतिक आखाड़ा

    जिन्हें सरहदों से आते ताबूत नहीं दिखते, उन्हें वीडियो भी नहीं दिखेगा। सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो पब्लिक डोमेन में डाला गया है, देश-भर में देखा गया, विदेशों में भी। सेना से यह वीडियो माँगा गया होगा या फ़िर मज़बूर होकर सेना ने ही दे दिया होगा। सेना करे भी तो क्या, वह एक ऐसे मज़बूर देश की सेना है, जिसके...

  • इमरजेंसी: इंदिरा गांधी के भय का परिणाम

    यह कहा जा सकता है कि इंदिरा गाँधी के शासन-काल में ही नव-राष्ट्रवाद का उदय हुआ। 1962 में चीन से अपमानजनक सैन्य-युद्ध, 1965 में पाकिस्तान से सैन्य-गतिरोध, बहुत ही धीमा आर्थिक विकास और विदेशों से मिलते अनुदानों पर अत्यधिक निर्भरता ने लोगों में, इंदिरा की कार्य-प्रणाली के प्रति असंतोष और राष्ट्र के...

  • बाईबल और वामियों के चंगुल से निकलता भारतीय इतिहास

    साक्ष्य मिल रहे हैं, फिर शोध से क्यों डरते हैं इतिहासकार? इतिहासकारों का मानना है कि केवल वस्तुओं का मिलना ही इतिहास नहीं होता, इतिहास होने का प्रमाण नहीं होता, बल्कि उन्हें सैद्धांतिक प्रश्न (theoretical question) से गुजरना होता है, जो दार्शनिक तौर पर उस वस्तु का पक्ष रख सकें, बचाव कर सकें, उसकी...

  • लोकतंत्र का इफ़्तार, बाकी सब बेकार

    यह परंपराओं का देश रहा है। प्रकृति-प्रेम, आदर्श-रिश्ते, परिवार, त्योहार सभी के लिए उत्सव की परम्परा रही है। और जबसे यह देश धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्र हुआ, तब से तो कितनी ही स्वस्थ परम्पराएं इससे जुड़ गईं।आतिथ्य की परंपरा सर्वोपरि है इस देश में। अपने अतिथि का उचित सम्मान, अपने आस-पड़ोस के लोगों की चिंता...

  • मोदी हत्या की साजिश: सत्ता लोलुपों का छद्म सेकुलरवाद बेनकाब

    प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िशें न रचिए, शहीद मोदी की जन-स्मृतियाँ और ज़्यादा तीक्ष्ण, जीवन्त और शाश्वत होंगी।विश्व भर की सभ्यताओं में "राजनैतिक हत्याएँ" होती रही हैं। सत्ता की महत्वकांक्षा जघन्य अपराध और साज़िशें करवाती आई है जिससे कोई भी साम्राज्य या लोकतंत्र अछूता नहीं रहा है। स्वतंत्रता के तुरंत...

  • प्रयाग V/s अल्लाहबाद : फ़र्क तो पड़ता है साहब, नाम से ही तो सब-कुछ है

    फ़र्क तो पड़ता है साहब, नाम से ही तो सब-कुछ है! फ़र्क नहीं पड़ता तो बुरा क्यों लग गया। प्रयाग हो या अल्लाहबाद, नाम ही तो है।शायद इसलिए कि अल्लाह को कृष्ण और कृष्ण को अल्लाह नहीं कहा जा सकता। कबीर भी नहीं कह सके, और उन्हें भी पंडित और मुल्ला कहना पड़ गया। ईश्वर एक है भी, तो नाम तो अलग हैं और नाम ही...

  • प्रिय, सुज़न्ना अरुंधती रॉय के नाम खुला पत्र

    हम भारतीय आपके बिना बेहतर कर सकते हैं! इन सभी वर्षों में हम इस तथ्य के आदी हो चुके हैं कि आपको "ध्यान की असमानता" पसंद नहीं है, लेकिन हम पहले से ही आपको बहुत आवश्यक ध्यान देते-देते थक चुके हैं। प्रेम, करुणा और देखभाल से भरी "घोर मानववादी" होने के आपके सभी दावों और घोषणाओं के बावजूद, मुझे यह बताना...

Share it