NOTA : विषहीन सर्प / खाली कारतूस

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नोटा -(NOTA) - NONE OF THE AVOBE

आजकल एक शब्द आप सबके सामने बार-बार आ रहा होगा ये शब्द है "नोटा", दरसअल बात सब इस पर कर रहे हैं लेकिन अपने-अपने लिहाज से, मुझसे कई दिनों से इस पर लिखने के लिए कई मित्रों ने इनबॉक्स किया और मेरी नोटा के संदर्भ में राय जानने की कोशिश की, मुझसे यदि नोटा को एक लाइन में समझाने को कहा जाए तो इसे बड़ी आसानी से समझा जा सकता है कि-

"नोटा लोकतंत्र में उम्मीदवारों के कनपटी पर रखी हुई वो रिवॉल्वर है जिसके बारे में उम्मीदवार को पता है कि वो खाली है, वो तब तक प्रभावी नही है जब तक कि "राइट टू रिजेक्ट" या "राइट टू रिकॉल" का कारतूस उसमें नही डाला जाता, इन्हें पूर्ण प्रभावी रूप के लागू नही किया जाता।।"

नोटा का इतिहास -

मतपत्र में 'नोटा' का पहली बार प्रयोग 1976 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में "इस्ला विस्टा म्युनिसिपल एडवाइजरी काउंसिल" के चुनाव में हुआ था। नोटा इस्तेमाल करने वाले देशों में कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील, बांग्लादेश, फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम, यूनान आदि देश शामिल हैं। रूस में 2006 तक यह विकल्प मतदाताओं के लिए उपलब्ध था, 2013 से भारत भी निगेटिव वोटिंग ऑप्शन उपलब्ध करवाने वाले देशों में शामिल हो गया।।

भारत मे चुनाव आयोग ने 2009 में कोर्ट के सामने यह इच्छा जताई थी कि 'नोटा' की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। लेकिन नोटा की सफल सुनवाई सन 2013 में "पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़" नामक एक NGO द्वारा दाखिल याचिका पर हुई, जिसमें नेगेटिव वोटिंग के ऑप्शन उपलब्ध करवाने की बात रखी गयी थी। और इस सुनवाई में भारत सरकार ने अहम फैसला सुनाते हुए पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ बनाम भारत सरकार मामले में आदेश दिया कि जनता को मतदान के लिये नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए।

नोटा नया नही है -

नोटा का जितना हौव्वा बनाया जा रहा है उनकी जानकारी के लिए बता दूँ की नोटा भारत के लिए नया नही है 2013 से पहले भी सभी उम्मीदवारों में से कोई नही का ऑप्शन उपलब्ध रहा है पहले इसके लिए मतदाता को चुनाव अधिकारी के पास जाकर "49 ओ" फॉर्म भरना होता था। इस फॉर्म को भरने के लिए व्यक्ति को चुनाव अधिकारी के पास तक जाना होता था और 49-O का फार्म भी नोटा ही था जिसका मतलब होता था सभी उम्मीदवार अयोग्य है, लेकिन जब मतदाता ये फार्म भरता था तो सभी पार्टियां उसकी पहचान कर लेती थी और फार्म भरने में भी मतदाता को परेशानी होती थी, अब बैलेट पर नोटा बटन सिर्फ फार्म 49-O का डिजिटलीकरण भर है।।

नोटा का मुख्य उद्देश्य -

जहाँ अन्य देशों में राइट "टु रिजेक्ट" या "राइट टु रिकॉल" का ऑप्शन होने पर राजनैतिक पार्टिया उम्मीदवार साफ सुथरे उतरती है वहीं भारत मे नोटा का अर्थ एक वोटर के लिए इतना भर रह गया है कि पहला तो वो वोट डालकर मतदान प्रतिशत बढ़ाए और दूसरा ये सुनिश्चित करे कि मतदान में पहुँच कर उसका मत कोई अन्य न डाल दे, पहले ये होता था कि मतदाता के मतदान केंद्र पर न पहुँच पाने पर उम्मीदवार उसके मत पर किसी और का मतदान करवा देते थे नोटा आ जाने से अब उस मतदाता की गिनती हो जाती है और उसका मत काउंट हो जाता है, नोटा का मुख्य काम इतना ही इस समय इससे ज्यादा कुछ नही।।

नोटा मतलब बिना कारतूस का रिवाल्वर -

शीर्ष अदालत का नोटा के संदर्भ में फैसला राजनीति से भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लिया गया था। माना जा रहा था कि इस कदम से राजनीतिक दल साफ-सुथरे प्रत्याशियों को टिकट देंगे। लेकिन गंदी राजनीति के खिलाड़ियों ने इसमें अपना खेल दिखा दिया इसमें से "राइट टु रिजेक्ट" (RTR)" को अलग कर दिया गया जिससे नोटा निष्प्रभावी हो गया। "पीपुल्सर यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL)" की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते केन्द्र मे बैठी कांग्रेस सरकार NOTA का विकल्प देने पर तो सहमत हो गयी लेकिन इस के जो नियम बनाये गये हैं, उससे NOTA पूरी तरह बेअसर हो जाता है या कहें तो उस विषहीन सर्प की तरह है जिसके काटने का किसी को डर नहीं होता !

उदाहरण से समझिए -

मान लीजिये कि किसी निर्वाचन क्षेत्र मे अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के 2 उम्मीदवार खड़े चुनाव में खड़े हैं और दोनों ही अपराधिक छवि के हैं और ज्यादातर जनता उन्हें वोट नही देना चाहती इसी कारण उनके खिलाफ NOTA का इस्तेमाल करना चाहती है ! इन दोनों ही उम्मीदवारों के नाम मान लेते हैं कि A और B हैं ! मान लेते हैं कि इस निर्वाचन क्षेत्र मे कुल 100 मतदाता हैं और यह मानते हुये कि शत प्रतिशत मतदान हो रहा है और जब मतदान का परिणाम आता है तो वो कुछ इस प्रकार रहता है:

A को 14 मत

B को 15 मत

NOTA को 71 मत

कुल मत 100 - इस तरह परिणाम रहा 100% और हर तरफ संदेश गया कि बहुत अच्छी वोटिंग हुई, लेकिन सच्चाई ये रही कि निर्णायक वोटिंग सिर्फ और सिर्फ रही 29%।

अब इस 100% वोटिंग का परिणाम यह हुआ कि 100 मतदाता वाले निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवार "B" को जिसे सिर्फ 15 वोट ही मिले हैं वो ही सर्वाधिक माने जाएंगे, और इस परिणाम के आधार पर ही उसे ही विजयी घोषित कर दिया जायेगा ! जबकि परिणाम के अनुसार तो सबसे अधिक वोट नोटा के खाते में गए हैं। लेकिन सारी समस्या की जड़ यहीं हैं।

क्योंकि देखा जाए तो यह बात हैरानी वाली तो है लेकिन नियम हमारी सरकार ने कुछ इस तरह से ही बनाये है, अगर NOTA को प्रभावशाली तरीके के लागू करना हो तो होना यह चाहिये कि जिस निर्वाचन क्षेत्र में भी उम्मीदवारों के मत प्रतिशत से अधिक प्रतिशत से ज्यादा लोग NOTA का बटन दबाये, वहाँ पर चुनाव रद्द करके दुबारा मतदान होना चाहिये और जिन नेताओं के खिलाफ लोगों ने NOTA का बटन दबाया है, उनके आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगना चाहिये ! अगर ऐसा नही होता तो NOTA का कोई मतलब नही है ! मतलब जब तक "राइट टु रिजेक्ट" या "राइट टु रिकॉल" का कारतूस इस नोटा की रिवाल्वर में नही डाला जाता तब तक नोटा दबाने का मतलब वोट ना डालने जाने से ज्यादा कुछ नही ।। यानि आप जाकर नोटा दबाओ या घर में बैठकर मौज बनाओ !

विशेष -

इसका बीजेपी पर प्रभाव क्या पड़ेगा या कांग्रेस कैसे इसका इस्तेमाल बीजेपी के खिलाफ कर रही है शायद इसपर लिखने से ये पोस्ट निष्पक्ष नही रह पाएगी इसलिए बस इतना ही । केंद्र सरकार की सवर्णो की अनदेखी करने की पीड़ा एक सवर्ण होने के कारण मैं भली भांति समझता हूँ, नोटा दबाने न दबाने का निर्णय आपका अपना है और आप स्वयं समझदार हैं अपने हित का आपसे बेहतर निर्णय सिर्फ आप ही ले सकते है।

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नोट - ये लेखक के निजी विचार है, आपकी अपनी सहमति असहमति हो सकती है, राजनैतिक टिप्पणी न करें क्योंकि मैं किसी पार्टी का एजेंट नही हूँ ।।

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