अजेष्ठ त्रिपाठी

अजेष्ठ त्रिपाठी

""मैं शून्य हूँ"" पानी की बूँद जैसे, मैं एक शून्य हूँ वैसे, आदि न अंत होता है, शून्य वही कहलाता है, मुझसे जो मिल जाता है, दस गुना स्वयं हो जाता है दुश्मन जो मुझसे टकराता है शून्य स्वयं ही वह हो जाता है, प्रकृति के चेतन में जो डूब जाता हैं, अवचेतन में शून्य सा निखर जाता है वेद से अवतरित ऋचाओं का यह मान है, सूर्य चंद्र के परिक्रमण ये शून्य समान है, भ्रष्टो की दुनिया में जो चला जाता हैं, ईमान उसका शून्य ही हो जाता है, आतंक जो दुनिया में फैलाता है, संवेदनाए शून्य कर ही लाता हैं, अंतरिक्ष में विचरण करता है, अवनी को शून्य सा पाता है, दुनिया जो दिखलाती है, आँखे शून्य सी लगती है, पानी की बूँद हूँ जैसे, मैं एक शून्य हूँ वेसे, ""मैं शून्य हूँ""


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