मज़हब है सिखाता आपस में बैर रखना: मदीने से आज तक
हमने एकहत्तर में पाकिस्तान को तोड़ा और बांग्लादेश बनाया, हासिल? एक और कट्टर उन्मादी पड़ोसी का जन्म जिसने हमारे सारे लोगों को केवल तीस-चालीस साल में निगल लिया और हमारे धर्मस्थान जमींदोज कर दिये बल्कि इससे कहीं आगे जाकर अपने देश को आईसिस और आई०एस०आई० की शरणस्थली बना दी और हमारे सारा एहसान के बदले हमें ठेंगा दिखा दिया। एक सेकुलर बांग्लादेश सेकुलरिज्म के बोझ को बीस साल भी नहीं झेल सका और उसने दो दशक के अंदर ही अपनी फितरत दिखा दी। आप अगर कश्मीर के मसले को सिर्फ और सिर्फ "मजहबी एंगल" से देखते तो आपको पता चलता कि एक गैर-मुस्लिम मुल्क में कहीं से भी वहां की बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी ये बिलकुल भी पसंद नहीं करती कि उनके ऊपर काबिज हुक्मरान किसी और मजहब का हो। जहाँ ये अल्पसंख्यक हैं वहां तो फिर भी सब्र कर लेंगे पर कश्मीर जैसी जगहों में ये असंभव है। मैं अपने शब्द दुहरा रहा हूँ: ये असम्भव है कि वो अपने ऊपर किसी गैर-मुस्लिम हुक्मरान को काबिज होते देखेंगे भले ही आप उनके आगे बिछ जायें। पिछले चौदह सौ सालों में न तो किसी ने ऐसे होता देखा है, न आज देख रहा है और न आगे कभी होते देखेगा।


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हमने एकहत्तर में पाकिस्तान को तोड़ा और बांग्लादेश बनाया, हासिल? एक और कट्टर उन्मादी पड़ोसी का जन्म जिसने हमारे सारे लोगों को केवल तीस-चालीस साल में निगल लिया और हमारे धर्मस्थान जमींदोज कर दिये बल्कि इससे कहीं आगे जाकर अपने देश को आईसिस और आई०एस०आई० की शरणस्थली बना दी और हमारे सारा एहसान के बदले हमें ठेंगा दिखा दिया। एक सेकुलर बांग्लादेश सेकुलरिज्म के बोझ को बीस साल भी नहीं झेल सका और उसने दो दशक के अंदर ही अपनी फितरत दिखा दी। आप अगर कश्मीर के मसले को सिर्फ और सिर्फ "मजहबी एंगल" से देखते तो आपको पता चलता कि एक गैर-मुस्लिम मुल्क में कहीं से भी वहां की बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी ये बिलकुल भी पसंद नहीं करती कि उनके ऊपर काबिज हुक्मरान किसी और मजहब का हो। जहाँ ये अल्पसंख्यक हैं वहां तो फिर भी सब्र कर लेंगे पर कश्मीर जैसी जगहों में ये असंभव है। मैं अपने शब्द दुहरा रहा हूँ: ये असम्भव है कि वो अपने ऊपर किसी गैर-मुस्लिम हुक्मरान को काबिज होते देखेंगे भले ही आप उनके आगे बिछ जायें। पिछले चौदह सौ सालों में न तो किसी ने ऐसे होता देखा है, न आज देख रहा है और न आगे कभी होते देखेगा।
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